Published on 27/05/2025 06:03 PM
शेयरों की ब्लॉक डील के नियमों में बदलाव हो सकता है। सेबी ने इस बारे में कदम बढ़ा दिया है। ब्लॉक डील के मौजूदा नियमों की समीक्षा हो रही है। मामले से जुड़े दो लोगों ने यह जानकारी दी। एक वर्किंग ग्रुप को इस मसले से जुड़े मुख्य पहलुओं पर विचार करने को कहा गया है। इस ग्रुप को म्यूचुअल फंड्स, ब्रोकर्स, इनवेस्टमेंट बैंकर्स और दूसरे मार्केट पार्टिसिपेंट्स का फीडबैक लेने को कहा गया है। वर्किंग ग्रुप पांच प्रमुख मसलों पर विचार करेगा।
1. डील की न्यूनतम साइज
अभी शेयरों की ब्लॉक डील (Block Deal) के लिए 10 करोड़ रुपये या 5 लाख शेयर की न्यूनतम साइज तय है। यह लिमिट 2017 में तय की गई थी। मार्केट पार्टिसिपेंट्स से यह पूछा गया है कि क्या इंडियन इक्विटी मार्केट की गहराई और आकार को देखते हुए डील साइज को बढ़ाने की जरूरत है।
2. प्राइस बैंड में फ्लेक्सिबिलिटी
अभी ब्लॉक डील के लिए रेफरेंस प्राइस के करीब प्लस-माइनस एक फीसदी के प्राइस बैंड के इस्तेमाल की इजाजत है। सेबी इसे बढ़ाकर प्लस-माइनस 2 फीसदी करना चाहता है। खासकर मिड और स्मॉल कैप शेयरों के मामले में इसकी जरूरत महसूस की जा रही है। इसकी वजह यह है कि अभी जो प्राइस बैंड तय है उसमें पर्याप्त शेयर उपलब्ध नहीं होते हैं।
3. VWAP टाइम विंडो एडजस्टमेंट
दोपहर के बाद के सेशन के लिए रेफरेंस प्राइस 15 मिनट के वॉल्यूम वेटेड एवरेज प्राइस पर आधारित होता है, जो 1:45 से 2:00 बजे का होता है। उसके बाद ब्लॉक डील का प्राइस 2:00 से 2:05 के VWAP से तय होता है। वर्किंग ग्रुप इस पर विचार कर रहा है कि क्या इस विंडो को 30 मिनट के लिए बढ़ाने से स्टैबिलिटी बढ़ेगी और वोलैटिलिटी घटेगी।
4. सुबह और दोपहर के सेशन के लिए अलग प्राइस बैंड
सेबी सुबह और दोपहर के सेशन के लिए अलग-अलग प्राइस बैंड लिमिट पेश करने के बारे में सोच रहा है। अभी दोनों ही सेशन के लिए प्लस-माइनस 1 फीसदी प्राइस बैंड का इस्तेमााल होता है। लेकिन, मार्केट पार्टिसिपेंट्स इसमें फ्लेक्सिबिलिटी चाहते हैं।
5. ब्लॉक डील विंडो की समीक्षा
अभी ब्लॉक डील के लिए दो विंडो हैं। पहला 8:45 से 9:00 और दूसरा 2:05 से 2:20 का है। इस बात की समीक्षा हो रही है कि क्या इस विंडो की टाइमिंग पर्याप्त है। सेबी पहले ही क्लोजिंग ऑक्शन सेशन (CAS) के दौरान 3:30 से 3:45 के तीसरे लार्ज डील विंडो का प्रस्ताव पेश कर चुका है। इस बारे में सेबी को भेजे ईमेल का जवाब नहीं मिला।
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आम तौर पर इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर्स ब्लॉक डील का इस्तेमाल करते हैं। इनमें म्यूचुअल फंड्स और इंश्योरेंस कंपनियों जैसे बड़े निवेशक शामिल होते हैं। इसमें दोनों पक्षों के बीच पहले से हुई बातचीत के आधार पर डील होती है। इसके लिए एक्सचेंज का विडो तय है। इसमें प्राइस मैनिपुलेशन रोकने के लिए कड़े नियम और कानून हैं।
Tags: #share markets
First Published: May 27, 2025 5:55 PM
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